02-10-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"सदा मिलन के झूले में झूलने का आधार"

सर्व झमेलों से छुड़ाने वाले, सर्व प्राप्ति स्वरूप बनाने वाले ज्ञान सागर शिव बाबा बोले:-

आज चारों ओर के याद में रहने वाले बच्चों को बापदादा साकार वा आकार में सम्मुख देखते हुए याद का रेसपान्ड पदमगुणा याद प्यार दे रहे हैं। कोई तन से, कोई मन से एक ही मिलन के संकल्प में, एक ही याद में स्थित हैं। बापदादा खज़ाना तो दे ही चुके हैं। साकार द्वारा, आकार अव्यक्त रूप द्वारा सर्व खज़ानों के मालिक बना चुके हैं। जब सर्व खज़ानों के मालिक बन गये तो बाकी क्या रह गया है? कुछ रहा है? बापदादा तो सिर्फ मालिको को मालेकम् सलाम करने आये हैं। देखने में तो मास्टर बन ही गये हो, बाकी क्या रह गया है!

सुनने का हिसाब निकालो और सुनाने वाले का भी हिसाब निकालो। अथाह सुन लिया, अथाह सुना लिया। सुनते-सुनते सुनाने वाले भी बन गये। तो सुनाने वालों को क्या सुनना है? आप लोगों का ही गीत है, अनुभव का गीत गाते हो, ‘‘पाना था वो पा लिया- अब काम क्या बाकी रहा। यह गीत किसका गीत है? ब्रह्मा बाप का है वा ब्राह्मणों का भी है? यही गीत है ना आपका? तो बाप भी पूछते हैं- काम क्या बाकी रहा? बाप आप में समा गये और आप बाप में समा गये, जब समा गये तो बाकी क्या रह गया? समा गये हो या समा रहे हो? क्या कहेंगे? समा गये वा समा रहे हो? नदी और सागर का मेला तो हो ही गया ना! समाना अर्थात् मिलन मनाना। तो मिलन तो मना लिया ना? सागर गंगा से अलग नहीं, गंगा सागर से अलग नहीं। गंगा सागर का अविनाशी मेला है। समा गये अर्थात् समान बन गये। समान बनने वालों को बापदादा भी स्नेह की मुबारक देते हैं।

इस बारी बापदादा सिर्फ देखने आयें है। मालिको की आज्ञा मानकर मिलने के लिए आ गये हैं। मालिको को ना नहीं कर सकते हैं। तो ''जी हाजर’’ का पाठ पढ़कर हाजर हो गये हैं। ऐसे ही तत् त्वम्। बापदादा आदिकाल से ''तत् त्वम्’’ का वरदान ही दे रहे हैं। संकल्प और स्वरूप दोनों में तत्त्वम् के वरदानी हो। धर्म और कर्म दोनों में तत्त्वम् के वरदानी हो। ऐसे वरदानी सदा समीप और समान के अनुभवी होते हैं। बाप-दादा ऐसे समीप और समान बच्चों को देख हर्षित होते हैं। अमृतबेले से लेकर दिन के समाप्ति समय तक सिर्फ एक शब्द धर्म और कर्म में लाओ तो सदा मिलन के झूले में झूलते रहेंगे। जिस मिलन के झूले में प्रकृति और माया दोनों ही आपके झूले को झुलाने वाले, दासी बन जायेंगे। सर्व खज़ाने आपके इस श्रेष्ठ झूले के श्रृंगार बन जायेंगे। शक्तियों को, गुणों को, मेहनत से धारण नहीं करना पड़ेगा, लेकिन यह स्वयं आपका श्रृंगार बन आपके सामने स्वत: ऐसा मिलन का झूला, जिसमें बाप और आप, समान अर्थात् समाये हुए हों। ऐसे झूले में सदा झूलने का आधार एक शब्द - ''बाप समान’’

समान नहीं तो समा नहीं सकते। अगर समाना नहीं आता तो संगमयुग को गंवाया। क्योंकि संगमयुग ही नदी-सागर के समाने का मेला है। मेला अर्थात् समाना। मिलन मनाना। तो समाना आता है? मेला नहीं मनाते तो क्या करते? झमेला करते। तो या है झमेला या है मेला। बच्चे कहते हैं अकेला हूँ लेकिन बाप कहते अकेला होना ही नहीं है। जिसको अकेला कहते हो उसमें भी साथ है। संगम युग है ही कम्बाइन्ड रहने का युग। बाप से तो अकेले नहीं हो सकते ना! सदा के साथी हैं। बाकी छोटे-छोटे बच्चे झमेले में फंस जाते हैं। और झमेले भी अनेक हैं, एक नहीं। मेला एक है झमेले अनेक। तो मेले में रहो तो झमेले समाप्त हो जाएं। अब तो सम्पन्नता के प्रालब्धी बनो। अल्पकाल की प्रालब्ध को समाप्त कर सम्पूर्णता के सम्पन्नता की प्रालब्ध को अनुभव में लाओ। अच्छा-

ऐसे बाप समान, सदा बाप के मिलन मनाने के झुले में झूलने वाले, पाना था वा पा लिया- ऐसे सर्व प्राप्ति स्वरूप, सदा हर संकल्प और बोल में, कर्म में जी हजूर और जी हाजर करने वाले, ऐसे सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को, साकार द्वारा वा आकार द्वारा मिलन मनाने वाले देश विदेश के सर्व बच्चों को, बालक सो मालिको को बाप का मालेकम सलाम व याद प्यार। साथ-साथ श्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।

प्राण अव्यक्त बापदादा की मधुर मुलाकात पार्टियों के साथ :-

कर्नाटक जोन-

1. सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो, हर कर्म करते हो? जो साक्षी हो कर्म करते हैं उन्हें स्वत: ही बाप के साथीपन का अनुभव भी होता है। साक्षी नहीं तो बाप भी साथी नहीं इसलिए सदा साक्षी अवस्था में स्थित रहो। देह से भी साक्षी। जब देह के सम्बन्ध और देह के साक्षी बन जाते हो तो स्वत: ही इस पुरानी दुनिया से साक्षी हो जाते हो। देखते हुए, सम्पर्क में आते हुए सदा न्यारे और प्यारे। यही स्टेज सहज योगी का अनुभव कराती है। तो सदा साक्षी इसको कहते हैं - साथ में रहते हुए भी निर्लेप। आत्मा निर्लेप नही है लेकिन आत्मअभिमानी स्टेज निर्लेप है अर्थात् माया के लेप व आकर्षण से परे है। न्यारा अर्थात् निर्लेप। तो सदा ऐसी अवस्था में स्थित रहते हो? किसी भी प्रकार की माया का वार न हो। बाप पर बलिहार जाने वाले माया के वार से सदा बचे रहेंगे। बलिहार वालों पर वार नहीं हो सकता। तो ऐसे हो ना? जैसे फर्स्ट चांस मिला है वैसे ही बलिहार और माया के बार से परे रहने में भी फर्स्ट। फर्स्ट का अर्थ ही है फास्ट जाना। तो इस स्थिति में सदा फर्स्ट। सदा खुश रहो, सदा खुश नशीब रहो। अच्छा।

2. जैसे बाप के गुणों का वर्णन करते हो वैसे स्वयं में भी वे सर्व गुण अनुभव करते हो? जैसे बाप ज्ञान का सागर, सुख का सागर है वैसे ही स्वयं को भी ज्ञान-स्वरूप, सुख-स्वरूप अनुभव करते हो? हर गुण का अनुभव सिर्फ वर्णन नहीं लेकिन अनुभव। जब सुख-स्वरूप बन जायेंगे तो सुख-स्वरूप आत्मा द्वारा सुख की किरणें विश्व में फैलेंगी क्योंकि मास्टर ज्ञान सूर्य हो तो जैसे सूर्य की किरणें सारे विश्व में जाती हैं वैसे आप ज्ञान सूर्य के बच्चों की ज्ञान, सुख, आनन्द की किरणें सर्व आत्माओं तक पहुँचेंगी। जितने ऊंचे स्थान और स्थिति पर होंगे उतना चारों और स्वत: फैलती रहेंगी। तो ऐसे अनुभवी मूर्त्त हो। सुनना-सुनाना तो बहुत हो गया, अभी अनुभव को बढ़ाओ। बोलना अर्थात् स्वरूप बनना, सुनना अर्थात् स्वरूप बनना।

3. सदा खुशी के खज़ानों से खेलने वाले हो ना? खुशी भी एक खज़ाना है जिस खज़ाने द्वारा अनेक आत्माओं को माला-माल बना सकते हो। आजकल विशेष इसी खज़ाने की आवश्यकता है। और सब हैं लेकिन खुशी नहीं। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गयी है। अनगिनत खज़ाना मिल गया है। खुशी के खज़ाने में भी वैराइटी है ना! कभी किस बात की खुशी, कभी किस बात की खुशी। कभी बालक पन की खुशी तो कभी मालिकपन की खुशी। कितने प्रकार के खुशी के खज़ाने मिले हैं! वो वर्णन करते हुए औरों को भी मालामाल बना सकते हो। तो इन खज़ानों को सदा कायम रखो। और सदा खज़ानों के मालिक बनो।

सदा बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों को कार्य में लगाते रहो। बाप ने तो शक्तियाँ दे दी हैं। अब सिर्फ उन्हें कार्य में लगाओ। सिर्फ मिल गया है, इसमें खुश नहीं रहो लेकिन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज़ करो तो सदा मालामाल अनुभव करेंगे।

4. सब वरदानी आत्मायें हो ना? इस समय विशेष भारत में किसकी याद चल रही है? वरदानियों की। देवी अर्थात् वरदानी, देवियों को विशेष वरदानी के रूप में याद करते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि हमें याद कर रहे हैं? अनुभव होता है? भक्तों की पुकार महसूस होती है कि सिर्फ नालेज के आधार से जानते हो? एक है जानना, दूसरा है अनुभव होना। तो अनुभव होता है? वरदानी मूर्त्त बनने के लिए विशेषता कौन-सी चाहिए? आप सब वरदानी हो ना! तो वरदानी की विशेषता क्या है? वे सदा बाप के समान और समीप रहने वाले होगें। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरूषाथी तो वरदानी नहीं बन सकते। क्योंकि बाप पुरूषार्थ नहीं करता लेकिन सदा सम्पन्न स्वरूप में है तो अगर बहुत पुरूषार्थ करते हैं तो पुरूषार्थी छोटे बच्चे हैं, बाप समान नहीं। समान अर्थात् सम्पन्न। ऐसे सदा समान रहने वाले सदा वरदानी होगें।

अच्छा, ओम् शान्ति।